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Showing posts from February, 2022
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  खादी के इन्हीं सूतों से मेरी दादी को हर महीने पांच – छः रूपये मिल जाते थे  जिन से  उसके छोटे मोटे खर्चे निकलने के बाद भी उसके पास कुछ पैसे हमेशा रहते थे. पूरे वर्ष भर में उसको ज्यादा कपड़ो की जरूरत तो नहीं होती थी, लेकिन जो 2–4 धोतियां, सर्दियों में रजाई या खादी सूती शॉल उसे चाहिये थे वे सारी चीज़े आ जाती थीं। कभी कभी उसे उपहार में भी ऐसी धोती या चादरें  मिल जाती थी. लेकिन मेरी दादी उन  पर निर्भर नहीं थीं।  सूत बेचकर   इन चीजों में वह लगभग स्वावलंबी हो गयी थी. मैं जब तक हाई स्कूल में पढ़ता था तब तक बराबर मुझे यह काम उसके लिए करना पड़ता था. शुरू में तो बड़ा ही बोरिंग लगता था यह काम, अकेले जाना,  लाइन में लगना फिर वापस अकेले आना. लेकिन मेरी दादी कभी मुझे चार आने कभी दो आने दे देती थी. इनसे मुझे  लगभग हफ़्ता भर तो ज़रूर ही स्कूल में नमकीन या मिठाई टिफिन में खाने को पैसे हो जाते थे. वैसे भी दादी ने कहा तो करना ही था. यह खादी भंडार उन दिनों में बड़ी भीड़ भाड़ वाली जगह होती थी. मुझे भी जाकर लंबी कतार में खड़ा होना पड़ता था ताकि मेरी बारी आ...

BEFORE iT IS TOO LATE : WAKEUP CALL TO SAVE THE GANGA

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  प्रकाशनार्थ जब इस देश में गंगा बहती थी...  मुझे इस बात से आश्चर्य नहीं होता है कि करोड़ों रुपयों से बने नदी किनारे के बांध एवं उन पर बनी सड़कें टूट जाती हैं। सरकारी विभागों में तो ऐसा होता ही है. मुझे आश्चर्य उससे अधिक इससे है कि हम इससे परेशान - चिंतित नहीं होते हैं कि गंगा अब अपनी सहायक नदियों का पानी बाढ में भी क्यौं नहीं ले पाती है, या गंगा क्यौं सूख और सिकुड़ रही हैं! लगता है  नदियों  का इस प्रकार प्रवाह हीन हो जाना  जैसे दूर चीन - कोरिया से आई कोई ख़बर हो। मैं यह मानता हूं की बाढ़ में क्षतिपूर्ति के लिए सरकार की ओर से लोगों को जो ₹6,000/- प्रति परिवार की आय होती है वह मुफ्त में आई हुई अच्छी आय है. लेकिन क्या यह आय यहां हो रही कृषि की क्षति, व्यापार की क्षति, बिमारी, मृत्यु, इतने दिनों तक गंदगी में रहने से अधिक की प्राप्ति है?  हर वर्ष कई  लोग एक बार, कुछ लोग दो-दो बार, कुछ लोग हर महीना कांवर लेकर सिमरिया में या सुल्तानगंज में गंगाजल भरकर वैद्यनाथ धाम पैदल जाते हैं. मैंने उनसे भी पूछा है कि क्या आपने कभी यह सोचा है कि गंगा इतनी सिकुड़ क्यों गई? ...