BEFORE iT IS TOO LATE : WAKEUP CALL TO SAVE THE GANGA
प्रकाशनार्थ
जब इस देश में गंगा बहती थी...
मुझे इस बात से आश्चर्य नहीं होता है कि करोड़ों रुपयों से बने नदी किनारे के बांध एवं उन पर बनी सड़कें टूट जाती हैं। सरकारी विभागों में तो ऐसा होता ही है. मुझे आश्चर्य उससे अधिक इससे है कि हम इससे परेशान - चिंतित नहीं होते हैं कि गंगा अब अपनी सहायक नदियों का पानी बाढ में भी क्यौं नहीं ले पाती है, या गंगा क्यौं सूख और सिकुड़ रही हैं! लगता है नदियों का इस प्रकार प्रवाह हीन हो जाना जैसे दूर चीन - कोरिया से आई कोई ख़बर हो।
मैं यह मानता हूं की बाढ़ में क्षतिपूर्ति के लिए सरकार की ओर से लोगों को जो ₹6,000/- प्रति परिवार की आय होती है वह मुफ्त में आई हुई अच्छी आय है. लेकिन क्या यह आय यहां हो रही कृषि की क्षति, व्यापार की क्षति, बिमारी, मृत्यु, इतने दिनों तक गंदगी में रहने से अधिक की प्राप्ति है?
हर वर्ष कई लोग एक बार, कुछ लोग दो-दो बार, कुछ लोग हर महीना कांवर लेकर सिमरिया में या सुल्तानगंज में गंगाजल भरकर वैद्यनाथ धाम पैदल जाते हैं. मैंने उनसे भी पूछा है कि क्या आपने कभी यह सोचा है कि गंगा इतनी सिकुड़ क्यों गई? गंगा इतनी छिछली क्यों हो गई? मैंने जिन लोगों से पूछा है वह ऐसे लोग नहीं थे जो पढ़े लिखे नहीं है - वे प्रोफेसर हैं, इंजीनियर हैं, डॉक्टर हैं, देश विदेश की बातें करते हैं, लेकिन उन्हें यह पता नहीं है कि गंगा क्यों इतनी छिछली हो गई है, क्यों इतनी सिकुड़ गई हैं। जो गंगाजी पटना में 25–30 वर्ष पहले तक मई के महीने में 10 मीटर गहरी, 2 किलोमीटर चौड़ी हुआ करती थी, आज वह 3 मीटर से भी कम गहरी रह गई है, आधे किलोमीटर में ही सिकुड़ गई है. वहां क्रिकेट खेलते हैं बच्चे। गंगा नहीं रहेगी तो क्या हम रहेगें ? कोई नहीं पूछता है।
आप इसे आज मानें, कल मानें - गंगा समाप्त हो रही है. हमारी एक पूरी सांस्कृतिक व्यवस्था, एक अर्थव्यवस्था समाप्ति की ओर है. यह सिर्फ मैं एक साधारण नागरिक नहीं बोल रहा हूं, यह विशेषज्ञ बोल रहे हैं. किताबों की कोई कमी नहीं है, रिपोर्टों की कोई कमी नहीं है. गंगा लेकिन क्यों नहीं रहेगी यह जनता को जानना बहुत ही आवश्यक है।
हिमालय में सैकड़ों धाराओं में बहकर गंगा अंत में 5 धाराओं में सिमट जाती है। रुद्र प्रयाग के पास अलकनंदा, मंदाकिनी, नंदाकिनी,भागीरथी और एक अन्य, जिसे प्रायः धौलीगंगा कहते हैं, ये पांचों टिहरी में आकर फिर एक साथ होती हैं और वहां से ऋषिकेश हरिद्वार, मुरादाबाद, कानपुर, प्रयाग, काशी, पटना, मुंगेर, राजमहल होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिर जाती थीं. लगभग 2,600 किलोमीटर की लंबी यात्रा आराम से करती हुई गंगा जी गंगासागर पहुंच जाती थी।
इस लंबे रास्ते में गंगा जी अपनी सारी सहायक नदियों का भी पानी, बाढ़ में भी, लेकर निकल जाती थीं। बिहार में विशेष रुप से चार बड़ी बड़ी नदियां गंगा जी में मिलती हैं। घाघरा, गंडक , कोसी तथा सोन - ये चारों नदियां बिहार में ही 600 किलोमीटर की दूरी में भिन्न-भिन्न स्थानों में बहकर गंगाजी में मिल जाती हैं. फिर इन नदियों की अपनी सहायक नदियाँ हैं. गंगा इतनी गहरी एवं चौड़ी थीं कि इन सारी सहायक नदियों को समेट कर चल देती थीं, गंगा में बाढ़ सामान्य घटना नहीं थी.
साथ ही गंगाजी इन सारी नदियों का मल जल मिट्टी भी समेटकर चली जाती थीं. गंगा की धारा में इतनी शक्ति थी, वो 5 गंगाजी जो टिहरी के पास मिलती थीं उनमें इतना प्रवाह होता था और उस ज़माने में, आज से 30 – 35 वर्ष पहले तक, शहरों से इतना गन्दा पानी निकलकर गंगाजी में नहीं आता था, तो गंगाजी सब कुछ बहाकर ले जाती थीं. लेकिन अब जब टिहरी में आपने एक बहुत बड़ा बांध बना दिया, क्योंकि दिल्ली - देहरादून को बिजली चाहिए, आपने यह नहीं सोचा कि बिजली के बगैर हम जी सकते हैं या पानी के बिना. आपने टिहरी में बांध बना दिया और गंगाजी की 40 प्रतिशत धारा, पूरी भागीरथी, वहींं बंद हो गई। अलकनंदा मंदाकिनी और जो सहायक धाराएं आती हैं बस वही बहती रह गईं। नतीज़ा यह है कि गंगाजी की धारा में कम से कम 40 प्रतिशत कमी आ गई और मलबा कई गुना बढ़ गया. गंगाजी के किनारे 20 बड़े शहर हैं, 100 से अधिक उससे छोटे मझोले शहर हैं, इन सभी शहरों से आप गंगाजी में मलबा गिराते रहे. गंगा जी 40% कम शक्ति एवं 60℅ अधिक बोझ लेकर कैसे चलेगी!
गंगा जी आगे चली आई तब भी बंगाल में पहुंचते-पहुंचते फरक्का में आपने गंगाजी को फिर बांध दिया, उनका मुक्त प्रवाह 152 फाटकों वाले बांध डालकर आपने बंद कर दिया. पानी कलकत्ता के बंदरगाह में पहुंचे और वहां पर 10,000 टन वजन लेकर आने वाले जहाज़ अंदर आ सके. फरक्का से गंगाजी को मोड़कर कोलकाता बंदरगाह को फ्लश करने के पानी ले जाया गया। आपने बांग्लादेश, उत्तर बंगाल, बिहार,पूर्वी उत्तर. प्र. एवं झारखंड की खेती के बारे में सोचा ही नहीं कि इनकी खेती का क्या होगा।
गंगाजी व्यापार का राजमार्ग भी हुआ करती थीं. कोलकाता के कारखानों से बना बनाया सामान कानपुर और संगम प्रयाग होते हुए मथुरा तक चला जाता था, इतना व्यापार होता था। आपने जब वहां टिहरी में बांध बना दिया फरक्का में आपने बराज लगा लिया, गंगा जी का प्रवाह रुक गया स्थिर हो गया, गंगाजी उथली छिछली होती चली गईं. अब इस राजमार्ग पर कोई जहाज़ नहीं चलते हैं, पूरा व्यापार बंद हो गया, कानपुर की फैक्ट्रियां बंद हो गईं, कच्चा माल जाना बंद हो गया, कोलकाता से सामान बन कर आना बंद हो गया. एक पूरी रोजगार चली गई, खेती चली गई, सिंचाई चली गई, परिवहन चला गया आपने अगर ठीक से चलाया होता तो नदी मार्ग से नदियों के रास्ते हम दिल्ली से इन सभी जगहों पर आ जा सकते थे. यमुना से होते हुए प्रयाग इलाहाबाद वहां से फिर कोलकाता तक. भारत सरकार के परिवहन मंत्रालय के आकलन के मुताबिक प्रति किलोमीटर 10 पैसे की दर से अभी भी इस जलमार्ग पर अच्छी गति में यात्रा कर सकते हैं.
यूरोप में नदियों का उपयोग परिवहन के लिए हो रहा है. अमेरिका में भी हो रहा है, हमने लेकिन अपनी अदूरदर्शिता में थोड़ी सी बिजली के लिए इसे बंद कर दिया, कार धोने, बाथरूम धोने के लिए पानी चाहिए इसलिए हमने गंगाजी को बांध दिया. दिल्ली को अपनी गाड़ियां धोने के लिए 7,400,000 लीटर पानी रोज चाहिए. कोई भी नदी कबतक टिकेगी। केवल एक संस्कृति ही नहीं पूरी एक अर्थव्यवस्था ही समाप्त हो गई और यहां बैठी हुई जनता - जो पढ़ी लिखी नहीं हैं उससे मुझे कोई शिकायत नहीं है, लेकिन जो अखबार पढ़ते हैं, टेलीविजन देखते हैं रेडियो सुनते हैं, जो सरकार एवं जनता में नेता हैं, अधिकारी हैं, शिक्षित एवं बुद्धिजीवी वर्ग हैं मुझे आश्चर्य यह होता है कि उनके कान पर जूं तक नहीं रेंगी. हमने न गंगा जी की उफ़ या आह सुनी, ना खुद के लिए, ना इन लोगों के लिए चिंतित हुए।
आज परिणाम यह है कि जितनी भी नदियां इधर हैं - पूर्वी उत्तर प्रदेश से उत्तर बिहार, झारखंड, उत्तर बंगाल तक - उनमें जरा सा पानी आ जाए तो बाढ़ आ जाती है. वह पानी वापस जाता नहीं है. पानी जाए भी तो कहां जाए. गंगा खुद उथली हो चुकी हैं कहां ले जाएंगी पानी. गंगा के पानी के लिए हमने उल्टी नीति बना रखी है: बाढ़ में तुम रखो, सूखे में हम रखंगे. फरक्का और टिहरी दोनों मिलकर यही कहते हैं. बाढ़ में अचानक उठा देते हैं टिहरी के पानी का फाटक - आ जाओ आ जाओ नीचे पानी, और फरक्का में बंद कर देते हैं कि अब कोलकाता में पानी नहीं जाना चाहिए. कोलकाता सुरक्षित रहे दिल्ली सुरक्षित रहे बाकी देश का जो भी होना है हो जाए. यहां पहले बाढ़ आती भी थी तो 3–4 हफ़्ते में पानी निकल जाता था, खेत में नई मिट्टी डालकर, तालाबों में नया पानी डालकर. अब यह महीनों रहता है। पानी के ऐसे जमाव से अकेले दरभंगा जिले में आंकलन है कि एक लाख से अधिक आम के पेड़ सूख गए. बगीचे में तीन 3 महीने तक पानी जमा रहा और यह आम के पेड़ सिर्फ स्वाद के आम नहीं थे, धन के भी आम थे. हर वर्ष में से कम एक पेड़ पर ₹1,000/- की दर से किसानों को उसके पैसे आते थे. लेकिन हम उसके लिए परेशान नहीं हुए।
टिहरी एवं फरक्का दोनों जगहों में गंगा जी का पानी रोक कर हम गंगा को समाप्त कर रहे हैं। फरक्का का बराज काफी ऊंचा काफी बड़ा है, इंजीनियरिंग का मार्वल है, ठीक वैसे ही जैसे टिहरी का बांध है. इतना ऊंचा इतना बड़ा बांध इतनी सफलतापूर्वक बनाना और उसे चलाना यहां के इंजीनियरों के लिए गौरव का विषय है, हालांकि इसके लिए काफी बड़ी कीमत देनी पड़ी है. उस जमाने का 26 हजार करोड़ रूपया जब यह बना 1983 – 84 में तो टिहरी में लगाया गया. लगभग उतने ही पैसे फरक्का में लगे हैं। बांग्लादेश की खेती समाप्त हो गई, बांग्लादेश के लोगों ने इसके लिए काफी आंदोलन किया, जोर लगाया, लेकिन इमरजेंसी के दौरान सिद्धार्थ शंकर राय बंगाल के मुख्यमंत्री थे. तत्कालीन भारत सरकार ने उनकी सुनी, इनकी नहीं सुनी और बांग्लादेश के लोग कराहते रह गए. भारत की मदद बांग्लादेश ले चुका था और स्वतंत्र हो चुका था. अत: भारत एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभरा.भारत की इस शक्ति को बांग्लादेश नहीं रोक पाया, लेकिन बांग्लादेश की क्षति से ज्यादा क्षति भारत में हुई है। फरक्का का बराज जब गंगा जी के पानी को आगे बढ़ने से रोकता है तो गंगा जी बराज से टकराकर वापस आती है. कहा जाता है कि यह अंडर करेन्ट 175 कि मी पीछे मुंगेर तक वापस आती है, और अपने साथ वापस लाती है मलबे, मिट्टी के कण जो वैसे आगे बह जाते, परन्तु
मुक्त प्रवाह के अभाव में नीचे बैठ जाते हैं, और नदी को भरने लगते हैं. यह अंडर करंट अंदर ही अंदर मिट्टी भी काट देती है. बंगाल के सैकड़ों गांव जो आज से 50 वर्ष पहले नक्शे पर थे आज नहीं है. ये कहां चले गए, क्या रातों-रात समाप्त हो गए? वह सारा मलबा नदी के बीच टापू का रूप ले लेता है. गंगा जी में कभी-कभी एक दो दियारा मुंगेर के पास हुआ करता था, अब यह जगह जगह आ रहा है.पटना के पास गंगा जी में इतने टापू निकल गए हैं कि अगर आप चाहे तो इस टापू से उस टापू हल्का सा बांस का पुल बना ले और गंगा जी पार कर जाएं. यही काम पटना सिटी के पास पीपा पुल कर रहा है।
बाढ़ का पानी अब तुरन्त निकलता नहीं है. उत्तर बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, उत्तर बंगाल, झारखंड, आदि राज्यों में महीनों तक बाढ़ का पानी पड़ा रहता है. बीमारी, क्षति, मृत्यु, परिवहन का कष्ट, सरकारी रिलीफ देना, आदि सब सब मिलाकर जोड़ लेंगे तो जितना आज तक भी बिजली नहीं बनी होगी उससे ज्यादा की क्षति फरक्का और टिहरी से हर वर्ष हो जाती है।
रास्ता क्या है ? रास्ता एक ही है अब आज करे या कल करें दर्द होगा आपको लेकिन यह दर्द अभी हो रहे दर्द से कम होगा, टिहरी का बांध टूट जाना चाहिए फरक्का का बराज टूट जाना चाहिए और जहां जहां भी दियारा आ गया है वहां गंगा सफाई परियोजना जो भारत सरकार की है उसका सही उपयोग होकर उसे प्रवाहित कर देना चाहिए अन्यथा आप कितना भी वर्ल्ड बैंक से ऋण ले कर आएं गंगा जी की सफाई में आप हरिद्वार में सुंदर घाट और बनारस में सुंदर जहाज़ पर फ़ोटो खिंचवा लें गंगाजी का प्रवाह जब तक बाधा मुक्त नहीं होगा जैसा बिहार के मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार ने बहुत दर्द भरी आवाज में आप से 5 – 6 वर्ष पहले कहा था बड़ा सही कहा था एक ही नेता है जिसने यह बात उठाई थी कि यह बड़ा अन्याय हो रहा है वह जब तक नहीं होता है तब तक गंगा जी को बचाना उसके लिए असंभव है वो चली जाएंगी अब यह सरकार नहीं बचा पाएगी यह नेता नहीं बचा पाएंगे जनता ही अगर चाहे तो बचा सकती है जनता को उठकर खड़ा होना है दिल्ली से लेकर कोलकाता तक अब यह पूछना है कि क्या हमें इस कीमत पर बिजली चाहिए अब जबकि सोलर पावर से बिजली आती है वायु से बिजली आती है एटॉमिक पावर से बिजली आती है सारी दुनिया चल रही है तो क्या हम नदियों का सत्यानाश कर नदियों का सर्वनाश कर हमें बिजली चाहिए और वह भी ऐसी नदी जिसको हम दिन रात माता कहते हैं जिसके पांव पर मत्था टेके बिना हम पैदा नहीं होते हैं और जिसका जल मुंह में लिए बिना मरते नहीं है उस पूरी व्यवस्था को हम ऐसे ही समाप्त होने दें? उत्तर है नहीं। हर जगह वैसे भी हाइडल पॉवर प्रोजेक्ट जितने भी हैं नदियों पर जितने भी बांध है भारत में भी आप विशेषज्ञों का डाटा उठाकर देख लीजिए भूल से देख लीजिए 40 प्रतिशत से कम क्षमता पर काम करते हैं यदि उनकी क्षमता 100 वाट बिजली पैदा करने की है तो 40 वाट पैदा कर रहे हैं और खर्चा सौ से ज्यादा का लगा रहे हैं। फरक्का की ड्रेजिंग करने में ही इतना खर्च है कि उससे अधिक वैसी ही बिजली बाहर से खरीदकर भी ले आयेंगे तो सस्ती पड़ेगी। बात नेपाल की है दोष नेपाल को दे देते हैं नेपाल ऊंचा था बिहार से हमेशा ऊंचा ही रहेगा उसको कुछ नहीं कह सकते हैं उसका दोष नहीं है वह तो स्वयं पीड़ित है आपकी वजह से लेकिन जब तक हम वह हिम्मत नहीं जुटाएंगे जैसा रूस ने हिम्मत जुटाया कि भाई साम्यवादी शासन कम्युनिस्ट शासन रूस के लिए ठीक नहीं है चीन के लिए ठीक नहीं है अब उन्होंने सरकार बदल दी व्यवस्था बदल दी अब रूस और चीन फिर से आर्थिक शक्ति हो गए हैं नहीं तो ये तो C ग्रेड देश थे. उससे बहुत कम हिम्मत की आवश्यकता यहां है. हम टिहरी का बांध और फरक्का का बराज दोनों ही हटा दे और गंगाजी से माफ़ी मांगे कि मैया हमको माफ़ करना हमसे भूल हो गई और हम गंगा जी की साफ-सफाई करें जो गंगा जी को स्वच्छ रखने की परियोजनाएं है उनको इमानदारी से निष्ठा पूर्वक लागू करें तो गंगा शायद बच जाएगी नहीं तो यह विभीषिका चलती रहेगी और तब तक चलती रहेगी जब तक प्रकृति और प्रकृति का नियम है इसीलिए इसको प्रलय कहा गया है जब तक प्रलय होकर उससे खुद छुट्टी नहीं पा लेती है। सोचना यह है कि प्रकृति की प्रलय की प्रतीक्षा करें या स्वयं कुछ साहस और बुद्धि का उपयोग करें और सुधार करें।
श्रीश चौधरी (सेवानिवृत्त प्राध्यापक आईआईटी मद्रास)
शिक्षक (जीएलए सेंटर, पिंडारुच 847306)
ReplyForward |
Comments
Post a Comment